अपनों की अनंत यात्रा के श्री गणेश और इस लोक से उनकी अन्तिम विदाई को गरिमामयी बनाने की कोशिश नये मकाम पर है। जीव आश्रय परिवार की सेवा,तपस्या और संघर्ष जब पुरस्कृत हुये तो उदारता की प्रतिमूर्ति ने अपने हाथों से पुरस्कार प्रदान किया। जीत बहादुर जी वही मूर्ति हैं। अपनी धर्मपत्नी की स्मृतियों को अक्षुण्ण रखने और उनके मनोभावों का आदर इतनी उदारता के साथ करने के लिये उन्हें वर्षों याद किया जाता रहेगा। अपना परिवार इस पुनीत कार्य का भागीदार बना है।पुरस्कृत हुआ है। जिम्मेदारियां मिली हैं।अपेक्षाएं बढ़ी हैं। रथ निर्माण की कथा परिवार को पता है। जिन्हे नही मालूम उन्हें रथ में चिपके स्टीकरों को जूम करके पढ़ना पड़ेगा। रथ तैयार खड़ा है। इसे लोकार्पित करने की प्रक्रिया होनी है। 19 तारीख प्रस्तावित कर रहा हूं। कार्यक्रम में परिवार की उपस्थिति आवश्यक रहेगी। कैसे कब कहां लोकार्पण किया जाये। आइये कल शुक्रवार शाम 5 बजे कार्यालय में बैठ कर तय करते हैं🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

